कोरोना त्रासदी बढा़ सकती है बीहड़ के गांवों में जीविका का संकट

   फतेहपुर, कोरोना त्रासदी से परदेश की कमाई पर अब तक गुजारा कर रहे जिले के यमुना कछार के करीब दो सैकड़ा गांवों में गुजारे का संकट पैदा होने के आसार दिख रहे हैं।                लगभग१२० किलोमीटर लम्बी यमुना की सीमा से लगे गांवों की दुश्वारियां उसपार के बुंदेलखंड के एरिया से  इतर बिल्कुल नहीं हैं। ऊबड़-खाबड़ और अन उपजाऊ जमीन उस पर प्रतिवर्ष यमुना में आने वाली बाढ़ और अनियंत्रित बालू खनन के चलते जीविका के सीमित होते विकल्पों के कारण इन गांवों से भारी संख्या में पलायन होता रहा है।औसतन चालीस फीसदी युवाओं का पलायन दिल्ली, मुम्बई, सूरत, बंगलूरू, हैदराबाद, अहमदाबाद , चेन्नई और पुणे आदि शहरों के लिये होता रहा है।घरों में बीबी बच्चों को बुजुर्गों के संरक्षण में छोड़कर जो युवा मजदूरी या रेहड़ी लगाकर परदेश की कमाई से अपने परिवारों का गुजारा कर रहे थे, कोरोना संकट के चलते लागू किये गये लाक डाउन से उनकी घर वापसी होने से अब ऐसे परिवारों के जीविका का भारी संकट मुंह बाए खड़ा हो गया है। रेंय,कोडार,अढावल,उरौली,दसौली,दशहरी,ओती,दतौली,कोर्रा,हडाही,मैनाही,बडी़धोबिया,छोटीधोबिया,गढ़ी,लमेहटा,लिलरा,देवलान,गोकन,सेवरामऊ,धर्मपुर,धरहरी,कोटवा,कौहन, जरौली, सैंबसी,सरकंडी,गुरवल,किशनपुर,एकडला,कोट, गढ़ा ,अहमदगंज, तिहार और डडि़या जैसे अनेक गांव हैं जिनकी  जीविका यहां से महानगरों के लिये पलायन करने वाले युवाओं की कमाई पर निर्भर रही है। कोरोना महामारी के संक्रमण से निपटने की कोशिशों के चलते सरकार द्वारा लागू किए गये पूर्ण लाक डाउन से बंद हुए रोजगार और मजबूरी में युवाओं द्वारा की गयी घर वापसी ने इस क्षेत्र में जीविका का बड़ा संकट पैदा कर दिया है। कोर्राकनक गांव के प्रधान दिनेश सिंह के अनुसार क्षेत्र की बीहड़ जमीन और क्लाइमेट चेंज के चलते अनियमित और कम वर्षा से जब उपज कम होने लगी तो छोटे किसान और कृषि मजदूर यमुना की मनोरम खदानों में मोरम खोदने और लादने का काम करके जीविका चलाने लगे थे लेकिन डेढ़ दशक से मोरम माफिया द्वारा नियम विरुद्ध ढंग से भारी मशीनों से खनन और लोडिंग कराने से जहां जीविका का यह श्रोत जाता रहा वहीं अवैध खनन के कारण यमुना की भयानक कटान से गांव और क्षेत्र की करीब १२हजार बीघा जमीन यमुना पार बांदा के कब्जे में चले जाने से सैकड़ों परिवार और युवा भूमिहीन होकर पलायन कर गये। अब लाक डाउन से रोजगार बंद होने से युवाओं की घर वापसी हो जाने से  परिवारों के लिये जीविका का सवाल खड़ा हो गया है। गढी़ गांव के पूर्व प्रधान बाबू सिंह के अनुसार यहां के नब्बे फीसदी युवा महानगरों में मजदूरी या छोटे मोटे धंधे करके अपने परिवारों का गुजर बसर करते आ रहे हैं सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन अचानक कोरोना संकट ने सब कुछ गड़बड़ा दिया है।लगभग अस्सी फीसद लोग वापस आ गये हैं ,गुजर का कोई अन्य कोई विकल्प भी नहीं है यदि जल्द स्थिति सामान्य न हुई तो क्षेत्र में भुखमरी का संकट खड़ा हो जायेगा।