अजित पवार के उपमुख्यमंत्री बनने के दो दिन बाद ही 70 हजार करोड़ रुपए के सिंचाई घोटाले से जुड़े नौ मामलों की फाइल बंद कर दी गई है। यह घोटाला विदर्भ क्षेत्र में हुआ था और महाराष्ट्र का एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) इसकी जांच कर रहा था। एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के डीजी परमबीर सिंह ने कहा कि जो केस बंद किए गए हैं, उनमें से एक में भी अजित पवार का नाम नहीं था। ये सभी रुटीन मामले थे और इनमें कोई भी अनियमितता नहीं पाई गई। एसीबी सूत्रों ने बताया कि मामले सशर्त बंद किए गए हैं। यानी कोई नई जानकारी सामने आने पर इन्हें जांच के लिए दोबारा खोला जा सकता है।
महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री अजित पवार के खिलाफ बरसों पुराने केस वापस लिए जाने के बाद प्रियंका ने तंज कसा- इनका वन नेशन, वन स्लोगन है- 'हमारे साथ आओ, सारे पाप धुल जाएँगे।' प्रियंका ने ट्वीट किया- अभी- अभी प्रधानमंत्री जी झारखंड में भ्रष्टाचार पर मनमोहक भाषण दे रहे हैं और उसी समय महाराष्ट्र में उसे लागू किया जा रहा है।
कांग्रेस-राकांपा गठबंधन सरकार में सिंचाई मंत्री थे अजित पवार
यह मामला उस वक्त का है, जब राज्य में कांग्रेस और राकांपा की गठबंधन सरकार थी। 1999 और 2014 के बीच अजित पवार इस सरकार में अलग-अलग मौकों पर सिंचाई मंत्री थे। आर्थिक सर्वेक्षण में यह सामने आया था कि एक दशक में सिंचाई की अलग-अलग परियोजनाओं पर 70 हजार करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद राज्य में सिंचाई क्षेत्र का विस्तार महज 0.1% हुआ। परियोजनाओं के ठेके नियमों को ताक पर रखकर कुछ चुनिंदा लोगों को ही दिए गए।
तीन हजार टेंडर की जांच हुई, भाजपा ने चुनाव में मुद्दा बनाया था
इस मामले में 3 हजार टेंडर की जांच हुई थी। सिंचाई विभाग के एक पूर्व इंजीनियर ने तो चिट्ठी लिख कर ये भी आरोप लगाए थे कि नेताओं के दबाव में कई ऐसे डैम बनाए गए, जिनकी जरूरत नहीं थी। इंजीनियर ने ये भी लिखा था कि कई डैम कमजोर बनाए गए। 2014 में महाराष्ट्र में सत्ता में आने से पहले चुनाव प्रचार के समय भाजपा ने सिंचाई घोटाले को जबरदस्त मुद्दा बनाया था।